” To make such comparisons would be ridiculous if it was a question of modern European poetry , however great its merits might be ; it is not at all absurd when referring to Gitanjali . . . ? अगर आधुनिक यूरोपीय कविता के बारे में ऐसा कोई प्रश्न किया जाए तो इस तरह की कोई भी तुलना हास्यास्पद होगी भले ही इसमें हजारों गुण हों : और ऐसा ही जब ? गीतांजलि ? के संदर्भ में कहा जाए तब यह सवाल बहुत बेतुका नहीं होगा . . . क्योंकि यहां इसके असाधारण काव्य सौंदर्य के बारे में कोई मिथ्या धारणा नहीं है .